✨ "उस रौशनी के पार"
📌 Disclaimer (स्पष्टिकरण)
यह पूरी कहानी मेरी व्यक्तिगत सोच और अनुभवों पर आधारित है।
इसका उद्देश्य किसी धर्म, आस्था या परंपरा को ठेस पहुँचाना नहीं है।
मैं किसी को गलत या सही साबित नहीं कर रहा —
बस अपनी उस inner journey को शब्द दे रहा हूँ,
जिसमें मैंने भगवान को, खुद को और इस ब्रह्मांड को थोड़ा-थोड़ा समझने की कोशिश की है।
अगर कुछ बातें आपसे न मिलें, तो उसे एक इंसान की तलाश समझिए —
ना कि विरोध।
🕯️ भाग 1 – "मैं ढूंढ नहीं रहा था, मैं सिर्फ समझना चाहता था"
"भगवान को मानते हो?"
जब ये सवाल बाहर से आता है, तो जवाब आसान होता है।
"हाँ" या "ना" में निपट जाता है।
पर जब ये सवाल भीतर से उठता है —
तो जवाब देना नहीं, ज़िंदा रहना भारी लगने लगता है।
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🙏🏼 मैं भी पहले सबकी तरह था… पर अब सिर्फ महसूस करना चाहता हूँ
मुझे नहीं पता मैं कब बदल गया।
पर एक समय था जब मैं भी मंदिर जाता था,
मन्नतें मांगता था,
हर मुश्किल में हाथ जोड़ लेता था।
आज भी जाता हूँ, हाथ भी जोड़ता हूँ —
पर अब मैं कुछ मांगता नहीं।
अब मैं सिर्फ महसूस करना चाहता हूँ —
उस energy को… उस vibration को…
जो बाहर नहीं, अंदर मिलती है।
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😔 मंदिर तो जाता हूँ, पर ढूंढता हूँ खुद को
कई बार जब किसी पुराने, शांत मंदिर में जाता हूँ —
तो मूर्ति के सामने खड़ा तो होता हूँ,
पर मेरी आँखें मूर्ति नहीं देखतीं।
मैं उस energy को ढूंढता हूँ जो कभी वहां महसूस होती थी —
जो आँखें बंद करते ही दिल में उतर जाती थी।
अब भीड़ में शांति नहीं मिलती,
मगर कभी-कभी,
उस एकांत में बैठकर…
सिर्फ साँसों की आवाज़ सुनते हुए…
ऐसा लगता है जैसे भगवान वहीं है —
बिना किसी शक्ल, बिना किसी आवाज़ के।
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❓ लोग कहते हैं — ‘तू नास्तिक है’
क्यों?
क्योंकि मैं सवाल करता हूँ?
> "अगर भगवान सब सुनते हैं,
तो भूखे बच्चे क्यों सो जाते हैं?"
> "अगर पूजा से सब कुछ मिलता है,
तो किसान क्यों आत्महत्या करता है?"
> "अगर भगवान हर चीज़ का न्याय करते हैं,
तो अच्छे लोग क्यों टूट जाते हैं?"
लोग चिढ़ जाते हैं,
क्योंकि इनके पास जवाब नहीं होता।
और जब जवाब नहीं होते —
तो label देना आसान होता है:
"नास्तिक", "भटका हुआ", "धर्म विरोधी"।
पर मैं सिर्फ ये पूछता हूँ:
क्या सवाल करने वाला हमेशा गलत होता है?
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🌌 मेरा भगवान कोई चेहरा नहीं, एक ऊर्जा है
मुझे नहीं लगता भगवान किसी मूर्ति में बंद हैं,
किसी धर्म के झंडे में लिपटे हुए हैं,
या किसी भाषा में छिपे हैं।
मेरे लिए भगवान एक intelligent energy है —
जो इस पूरे ब्रह्मांड को चलाती है।
वो हर उस जगह है जहाँ सच्चाई है,
हर उस काम में जहाँ ईमानदारी है,
हर उस रिश्ते में जहाँ बिना स्वार्थ के अपनापन है।
वो तब भी पास होता है,
जब कोई पास नहीं होता।
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💤 कभी-कभी सपने भी जवाब देते हैं
एक रात एक अजीब सा सपना देखा —
मैं किसी पुराने, सुनसान मंदिर में था।
बहुत शांत माहौल… कोई आवाज़ नहीं… बस मैं।
फिर पीछे से एक औरत की आवाज़ आई —
बहुत धीमी, लेकिन बहुत साफ़।
> “जिधर सब भागते हैं, उधर मत जा...
तू जिस रौशनी को ढूंढ रहा है,
वो तेरे अंदर है।”
मैं पलटा — कोई चेहरा नहीं देखा,
पर उसकी बातों में एक जानी-पहचानी सी गर्मी थी।
जैसे कोई बाहर की शक्ति नहीं,
बल्कि मेरी आत्मा का ही कोई पुराना हिस्सा मुझसे बोल रहा हो।
क्या वो मेरा भ्रम था?
या कोई divine message?
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🧘♂️ अब मेरा मकसद बदल गया है
अब मैं मंदिर जाता हूँ,
पर भगवान को पाने नहीं —
बल्कि खुद को समझने।
मैं अब मांगता नहीं —
बस चाहता हूँ कि
वो ऊर्जा, वो सुकून, वो connection कभी मुझसे दूर न हो।
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🔚 और शायद... भगवान कभी बाहर था ही नहीं
शायद हम जब भी भगवान के आगे बोलते हैं —
हम किसी और से नहीं,
खुद से बात कर रहे होते हैं।
हम अपनी guilt, डर, आशा —
सब किसी invisible ताकत के सामने रख देते हैं —
ताकि थोड़ा हल्का महसूस कर सकें।
पर क्या हम सच में भगवान से बात कर रहे होते हैं…
या अपने अंदर के उस हिस्से से जो अब तक सुना नहीं गया?
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📍[भाग 1 समाप्त]
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