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विश्वास या मूर्खता

 ऐसी घटना जिसने डॉक्टर दर्शन को अपनी मूर्खता पर गर्व करा दिया.. इस घटना को मूर्खता कहना तो गलत होगा लेकिन वास्तव में  ये एक ऐसे विश्वास की कहानी है जिस पर विश्वास करना कितना सही और इसे मूर्खता कहना कितना गलत था ये घटना डॉक्टर दर्शन जी ने खुद साझा की थी जिसे मै उन्ही के शब्दों  मे आपसे भी साझा करना  चाहूँगा…. मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई. ‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था : आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा. ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर...

✨ "उस रौशनी के पार"

📌 Disclaimer (स्पष्टिकरण) यह पूरी कहानी मेरी व्यक्तिगत सोच और अनुभवों पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी धर्म, आस्था या परंपरा को ठेस पहुँचाना नहीं है। मैं किसी को गलत या सही साबित नहीं कर रहा — बस अपनी उस inner journey को शब्द दे रहा हूँ, जिसमें मैंने भगवान को, खुद को और इस ब्रह्मांड को थोड़ा-थोड़ा समझने की कोशिश की है। अगर कुछ बातें आपसे न मिलें, तो उसे एक इंसान की तलाश समझिए — ना कि विरोध। 🕯️ भाग 1 – "मैं ढूंढ नहीं रहा था, मैं सिर्फ समझना चाहता था" "भगवान को मानते हो?" जब ये सवाल बाहर से आता है, तो जवाब आसान होता है। "हाँ" या "ना" में निपट जाता है। पर जब ये सवाल भीतर से उठता है — तो जवाब देना नहीं, ज़िंदा रहना भारी लगने लगता है। --- 🙏🏼 मैं भी पहले सबकी तरह था… पर अब सिर्फ महसूस करना चाहता हूँ मुझे नहीं पता मैं कब बदल गया। पर एक समय था जब मैं भी मंदिर जाता था, मन्नतें मांगता था, हर मुश्किल में हाथ जोड़ लेता था। आज भी जाता हूँ, हाथ भी जोड़ता हूँ — पर अब मैं कुछ मांगता नहीं। अब मैं सिर्फ महसूस करना चाहता हूँ — उस energy को… उस vibration को… जो ...

हमारी अद्भुत सभ्यता और संस्कृति

 🌞हमारी अद्भुत सभ्यता और संस्कृति🌞        ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● रात्रि के अंतिम प्रहर में एक बुझी हुई चिता की भस्म पर अघोरी ने जैसे ही आसन लगाया, एक प्रेत ने उसकी गर्दन जकड़ ली और बोला- मैं जीवन भर विज्ञान का छात्र रहा और जीवन के उत्तरार्ध में तुम्हारे पुराणों की विचित्र कथाएं पढ़कर भ्रमित होता रहा। यदि तुम मुझे पौराणिक कथाओं की सार्थकता नहीं समझा सके तो मैं तुम्हे भी इसी भस्म में मिला दूंगा। अघोरी बोला- एक कथा सुनो, रैवतक राजा की पुत्री का नाम रेवती था। वह सामान्य कद के पुरुषों से बहुत लंबी थी, राजा उसके विवाह योग्य वर खोजकर थक गये और चिंतित रहने लगे। थक-हारकर वो योगबल के द्वारा पुत्री को लेकर ब्रह्मलोक गए। राजा जब वहां पहुंचे तब गन्धर्वों का गायन समारोह चल रहा था, राजा ने गायन समाप्त होने की प्रतीक्षा की। गायन समाप्ति के उपरांत ब्रह्मदेव ने राजा को देखा और पूछा- कहो, कैसे आना हुआ? राजा ने कहा- मेरी पुत्री के लिए किसी वर को आपने बनाया अथवा नहीं? ब्रह्मा जोर से हंसे और बोले- जब तुम आये तबतक तो नहीं, पर जिस कालावधि में तुमने यहाँ गन्धर्वगान सुना उतनी ही अवध...

किस्सा: दादा जी की डायरी से..

 दादा जी के डायरी:  मै बचपन से ही दादा जी को डायरी लिखते देखा है, मुझे याद है की जब मै बहुत छोटा था तो दादा जी अक्सर रात को एक डायरी मे कुछ लिखा करते थे और मुझे हमेशा से ये जिज्ञासा रही की मै जान पाऊं की आखिर उस डायरी मे दादा जी क्या लिखते थे मैने उनसे एक दिन पुछा की दादा जी आप इस डायरी मे क्या लिखते है? तब उन्होने कहा था की मै इसमे अपने कुछ खास अनुभव लिखता हुँ जब तुम बड़े हो जाओगे तो मै तुम्हे इसे जरुर दूंगा  पढ़ने के लिये। लेकिन समय के साथ उन्होने लिखना यो बन्द कर दिया पर उनकी पुरानी डायरी हमेशा से मेरे लिये एक कौतूहल बनी रही थी। परंतु समय के साथ मै जैसे जैसे बड़ा हुआ कही न कहीं वो डायरी की बात मेरे मन से धुन्धली हो गई। आज कई साल बाद मुझे वो डायरी एक बक्से मे दिखी और मैने बिना देर किये उसे उठा लिया और दादा जी के पास ग्या और बोला की आपकी डायरी मिल गई मुझे तब उन्होने मुझे बोला की  ये तुम्हारे लिये ही तो है और अब तुम इसमे लिखी बातों को समझ भी सकते हो तो इसे तुम ही अपने पास रखो... आखिर थीतो आज भी वो डायरी मेरे लिये जिज्ञासा का विषय तो बिना देर किये मै उसे तुरंत पढ़ने बैठ ग...

इंसानियत

बनारस में एक चर्चित दूकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त-यार आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई। उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया :  "दादी लस्सी पियोगी ??" मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक। क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 25 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।  दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे, वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा: "ये किस लिए..??"  "इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी !!" भावुक तो मैं उनको ...